Romantic Love Story In Hindi | रोमांटिक लव स्टोरी इन हिंदी

Romantic Love Story In Hindi। Love Stories Hindi Me

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हेल्लो दोस्तो आज फिर मै आप सबके लिए एक बहुत ही अच्छी कहानी लेकर आया हूं अगर आप Romantic love story in hindi पढ़ने का शौक रखते है तो आप इस कहानी को जरुर पढ़िए मै वादा करता हूं आपको ये कहानी बहुत ज्यादा पसंद आयेगी। ये कहानी दीक्षा चौधरी जी के द्वारा लिखी गई है तो चलिए शुरू करते है बिना किसी देरी के!!

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कौसानी , उत्तराखंड के गरुड़ तहसील के अंतर्गत आने वाला ये गाँव इतना सुंदर पर्वतीय प्रदेश है कि इसे देखने के बाद आप यूरोप तक को भूल जाएंगे । इस गाँव की मनोरम धरती से नंदा देवी पर्वत चोटी का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है ।जो बर्फ से ढका हुआ है । पिंगनाथ चोटी पे कौसानी बसा हुआ है।

दो नदियों गोमती और कोसी के बीच बने कौसानी को भारत का स्विटरजलैंड कहते है ।

ये ही सब सोचते हुए और कौसानी का नजारा कैसा होगा इसका ख्याल मन में लाये हुए दिव्यांशी अपने दोस्तों के साथ गाड़ी में बैठी थी । कार पहाड़ों के छोटे छोटे रास्तों से आगे बढ़ रही थी और इसके साथ ही दिव्यांशी की धड़कने भी । उसे पहले बार अजीब सा अहसास हो रहा था ।

वो छः दोस्त है , विनय , आरव ,अभी औऱ विशी , कवि और दिवि (दिव्यांशी)। ये दोस्त सब घूमने आए थे और कौसानी आने का  आईडिया दिवि का था । उसे पर्वत हमेशा से अपनी तरफ खींचते थे या फिर वो खुद खींची चली आती थी ।

वो अब अल्मोड़ा जिले से दूर निकल गए थे और कौसानी अब पास था । कौसानी से थोड़ि दूर वो गोमती नदी के पास रुके । सब कार से बाहर आके अँगड़ाई लेने लगे और थकान मिटाने लगे । और विशी अपनी हरकतों से सब को हँसा रही थी पर दिवि का ध्यान आज कहीं और ही था। वो नदी के किनारे पड़े बड़े से पत्थर पे बैठ गयी और खुद की जिंदगी में आये उतार चढ़ाओ को सोचने लगी ।

दिवि को प्यार में कभी बिलीव नहीं था ,वो अपनी मस्ती में रहने वाली लड़की है , लड़को के जैसे हमेशा जीन्स पहनने वाली , बालों को खुला या फिर जुड़ा बनाना , फिर भी उसकी खूबसूरती भी इस हिमालय के जैसी थी ,सादगी से परिपूर्ण फिर भी खुद की तरफ आकर्षित कर ले ।

दिवि ने अपने अक्स को पानी में देखा ,खूबसूरत होंठ , गहरी आँखे  , और हवा से चेहरे पे आती बालों की लटें । कुछ देर तक वो खुद को देखती रही जैसे खुद को पहली बार देख रही हो और फिर पानी में बन रहे अपने अक्स पे हाथ घुमा दिया ।

उसने अंजुली में पानी लिया और अपने चेहरे पे डालने लगी । गोमती नदी के शीतल पानी ने जैसे दिवि को होश में ला दिया।  हाथ मुँह धोने के के बाद ,दूर खड़े और एक दूसरे में खोए हुए आरव और  कवि को देखने लगी ।

कवि आरव से कह रही थी ," तुम हमेशा मेरे साथ रहोगे ना !"
आरव - इस जन्म में तो रहना ही पड़ेगा ,वरना मेरी टांगे टूटने का डर है।

ये सुन कवि उसे हल्के हाथों से मारने लगी । उन दोनों की ये प्यार भरी शरारतें देख दिवि मुस्कुरा उठी । थोड़ि देर तक दूर तक फैले हिमालय को देखने के बाद दिवि  अपने जैकेट को सही करते हुए उठी और कार की तरफ चल पड़ी ।

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कौसानी कोई बहुत बड़ा गाँव नहीं है  पर छोटा होके भी परिपूर्ण है । दिवि खिड़की से आ रही ठंडी हवाओं को महसूस कर रही थी और उसे बार बार " राहुल संकर्त्यान " का यात्रा वृतांत  " तिब्बत की यात्रा " याद आ रहा था ।

थोड़े से सफर के बाद सब कौसानी में थे ।दिवि ने कौसानी की भूमि पे कदम रखा और यादों के पन्ने फिर पलटने लगे ..

दिवि भी पर्वतीय छेत्र रानीखेत से थी और कौसानी से गहरा नाता था । पर वो छोटी सी उम्र में ही दिल्ली चली गयी  और फिर मुड़ के नही देखा । जब वो छोटी थी तो रानीखेत में एक कौसानी के लड़के का ननिहाल था और धीरे धीरे वो दिवि का दोस्त  भी बन गया ।

वो साथ में खेलते ,साथ में घूमते और उन्हें दुनियादारी से कोई मतलब नही था । एक बार उसने दिवि को जन्मदिन के तोहफे के रूप में एक चैन दी जिसमे आधे पत्ते के आकार का पेंडेड था और उसमे छोटा सा डायमंड लगा हुआ था ।और आधा उस लड़के के पास था ।

लेकिन दिल्ली आने की वजह से वो यादें वहीं छूट गयी ,वो लड़का भी गुस्सा हो उससे दूर चला गया । बस नहीं गयी तो यादे जो आज भी उसके पास थी ।

दिवि ने अकाअक अपने गले में पहनी उसी चैन को छुआ और फिर हटा लिया ।

सब के रहने की व्यवस्था एक साफ-सुतरे कॉटेज में की गयी  थी ,उन्हें पहले से इनके आने  की खबर थी ।

गांव का शुद्ध खाना खाके सब अपने अपने कमरों में सोने चले गए ।बेचैन तो सिर्फ दिवि थी  जब उसे अपने कमरे में भी चैन नहीं आया तो वो विशी को रूम में छोड़ बाहर नदी के पास आके खड़ी हो गयी और पत्थर पे बैठ गयी ।

दूर तक फैले विशाल हिमालय का श्वेत नजारा और नदी के पानी की कलकल की आवाज़ ,उसे अंदर तक सुकून पहुंचा रही थी । तभी किसी के आने की आहट हुई तो उसने आंखे खोली । कोई उसकी तरफ ही आ रहा था पर दिवि ने मुड़ के नहीं देखा ।

पीछे से उस इंसान की रौबीली आवाज़ आयी," आप को चल के आराम कर लेना चाहिए ,ये नजारे कल भी देखने को मिल जाएंगे , रात बहुत हो गयी है सो जाइये ।"

दिवि खड़ी होकर मुड़ी तब तक उस इंसान के वापिश जाते हुए की परछाई दिख रही थी ।पर दिख रहा था कि कोई लड़का ही था जिसकी आवाज़ में रौब था ।

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वो अंदर आके सो गई , आधी रात में कवि की चीखने की आवाज़ से हम सब उसके रूम में थे । आरव उसे चुप कराने में लगा था ,विनय और विशी उसे समझा रहे थे और अभी उसके लिए पानी लाने गया था ।

कवि बोल रही थी - वहाँ कोई है ! आरू पक्का भूत है!

आरव- बेबी भूत वुत कुछ नहीं होता । तुम्हे कोई वहम हुआ है !

सब उसे समझा रहे थे और में बाहर चली गयी तभी पीछे रूम से आवाज़ आयी ," वो मैं था आपके सुविधा चेक करने आया था  और रोशनी की कमी की वजह से आप मुझे भूत समझ बैठी!"

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दिवि ने पहचान लिया कि ये वही आवाज़ थी जो उसने बाहर सुनी , वो उस इंसान का चेहरा देखना चाहती थी इसलिए वो दौड़ते हुए अंदर आयी पर वो जा चुका था ।

दिवि मन मसोस के सोने चली आयी । सुबह उठ के वो नदी किनारे  वार्म अप कर रही थी ,और इसी चक्कर में उसका पैर फिसला और वो नदी के ठंडे पानी में गिरती उससे पहले किसी ने उसका हाथ थामा और अपनी तरफ खींच लिया ।

दिवि ने डरते डरते आँखे खोली , उसके सामने वही रात वाला लड़का था , 6 फ़ीट से ज्यादा की हाइट, गहरी काली आँखे ,सुर्ख गुलाबी होंठ ,हल्की बियर्ड और चेहरे पे सख्ती । दिवि इतना खो गयी कि उसका पैर फिर से  फिसला और वो उस लड़के के साथ नदी में गिर गयी ।

वो लड़का भी पूरा भीग गया और दिवि को घूरते हुए बोला," इतनी ठंड में आप नदी में गिर पड़ी है और मुझे भी साथ ले लिया ,अब आपको ठंड लगने का खतरा है क्योंकि आप इस मौसम की आदि नहीं हैं।"

दिवि को तो कोई होश ही नही था और इनसब के चक्कर में उससे इस ठंड में चला भी नहीं जा रहा था , उस लड़के ने ये देखा और उसे गोद में उठा लिया । दिवि इस हरकत से सहम गयी । वो लड़का ये सब देख बोला," आपसे चला नहीं जा रहा है ठंड की वजह से इसलिए बस आपको कॉटेज तक ले जाना है ,उम्मीद करता हूँ आप समझेंगी ।"

दिवि ने बिना कुछ कहे नजरें झुका ली , वो लड़का उसे रूम में लाया और उसे बेड पे सुलाने लगा लेकिन इनसब के चक्कर में दिवि के गले की चैन उस लड़के की चैन से फंस गई और जब दिवि निकालने लगी तो उसने देखा ये उसी आधे पते का पेंडेड है जो उसके पास भी है ।

ये देख दिवि के मुँह से सिर्फ एक शब्द निकला," दिव्यांश "

उस लड़के ने दिवि को देखा और सब समझ गया पर उसने कुछ नही कहा वो मुड़ा और पर्दे लगा हीटर ऑन कर दिया । पर दिवि उठी और उससे बोली," तुम वो रानीखेत वाले दिव्यांश हो ना "

उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया वो बस अपना काम करता रहा ,दिवि को अब खुन्नस होने लगी वो उसे पकड़ के बोली," तुम मेरे दीव हो ना!"

"जी नहीं ! मैं कौसानी का दिव्यांश हूँ! और आप लोग हमारे मेहमान ,आप हमारे कॉटेज में रुके है इसलिये आपका ख्याल रखना हमारी जिम्मेदारी है ,! मैं उन लोगों से रिश्ता नहीं रखता जो बिना बताए मुँह मोड़ ले और जो बेपरहवा हो!" दिव्यांश ने कहा ओर रूम से चला गया ।

ये शब्द दिवि को बहुत चुभे पर उसे खुशी थी कि दिव्यांश उसे आज भी नहीं भुला और वो चैन उसके गले में थी ,वो तो खुशी से उछल रही थी , कवि उसके रूम में आयी और उसे उछलते देख बोली,"ओ मेरी देवदास आज क्या हो गया ! बड़ी खुश है ,अलादीन का चिराग मिल गया क्या!"

दिवि उसे पकड़ के घुमाते हुए बोली," अरे उससे भी बड़ी चीज मिल गयी यार ,मतलब जिंदगी ही सफल हो गयी!"

कवि को कुछ समझ नहीं आया , दिवि बेड पे आराम से गिरते हुए बोली," मेरे हाफ लीफ को उसका पार्टनर मिल गया , हाय मै ये खुशी बर्दास्त नहींकर पा रही !"

कवि भी उछल पड़ी," यानी वो मिल गया , अरे बता तो कहाँ है वो ?"

दिवि उसे बालकनी की तरफ ले गयी और बाहर कुछ लोगो से बात करते हुए दिव्यांश को दिखाया ।

कवि दिव्यांश को ऊपर से नीचे देखते हुए बोली," यार कितना हॉट है , मतलब पूरा बम!!"

दिवि उसे घूरते हुए बोली," आरव को बताऊँ की तुझे कोई बहुत हॉट लग रहा था "

कवि हँसते हुए बोली," अरे मेरी लंका क्यों जला रही यार ! पर बंदा पूरा तेरे लेवल का है !"

दिवि उसे जोर से गले लगाते हुए बोली," अब बस इसे  मना लूँ तो सारी तप्यसा सफल हो!"

कवि - जा सिमरन जा जी ले अपनी जिंदगी !

दिवि ने जल्दी से कपड़े चेंज किये औऱ गले में सकार्फ़ डाल के दिव्यांश की तरफ आयी और उसे पुकारने लगी लेकिन दिव्यांश ने अनसुना कर नदी और पर्वत की तरफ चला गया । दिव्यांशी भी हांफते हुए  उसके पीछे आ गयी और उसके कंधे पे हाथ रख तेज तेज साँसे लेते हुए बोली," यार इतनी खूबसूरत लड़की तुम्हारे पीछे पड़ी है ,इतना भी क्या सख्त हो रहे यार! मुझ प्यारी लड़की पे तो तरस खाओ !"

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दिव्यांश ने उसे ग़ुस्से में घूरा," मुझे धोखेबाज़  लोगों से कोई फर्क नहीं फिर चाहे कैसे भी हो !"

दिव्यांशी उसके साथ फिर हो ली जैसे उसे बातों से कोई फर्क ही नहीं था । दिव्यांश नदी के पास आया और अपनी शर्ट उतार दी वो अब सिर्फ जीन्स में था । ये देख दिव्यांशी ने नजर घुमा ली और बड़बड़ाने लगी ," शरीफ लड़की के सामने ऐसे कौन करता है !"

दिव्यांश तो उसे वहाँ से जाने पे मजबूर कर रहा था । वो नदी के पानी से भीग गया और अपने बालों को सेट करते हुए उसके करीब आया ,ये देख दिव्यांशी की धड़कने  बढ़ गयी उसने नजर झुका ली ,दिव्यांश उसे कमर से पकड़ते हुए बोला," अब भी ये बदतमीज़ इंसान तुम्हें पसंद है क्या?"

दिवि ने उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला ," जो हो वही रहो ,जो नहीं हो वो बनने  की कोशिश मत करो!"

दिव्यांश को अब गुस्सा हो गया वो चिल्लाते हुए बोला," पर मुझे नहीं पसंद तुम ,तुम ही थी ना जो छोड़ के गयी तो अब मुझसे चाहती क्या हो तुम ! चली क्यों नहीं जाती !

दिवि से इस तरीके से किसी ने भी बात नहीं कि थी ये सुन उसकी पलकें गीली हो गयी वो वापिश मुड़ के कॉटेज में आ गयी और दिव्यांश देखता रहा ।

दिवि के चेहरे से गुस्सा  साफ झलक रहा था ,वो अपना बैग पैक करने लगी । तो कवि और विशी ने उसे  रोका पर वो कुछ नही सुन रही थी उसने कार में बैठने की कोशिश की तो अभी ने चाबी निकाल ली तो उसने पास खड़ी बाइक उठायी और स्टार्ट कर ली ।  इधर कवि ने दिव्यांश को सब बता दिया कि दिवि ने उसे बहुत ढूंढा ,रानीखेत से जाने के पहले वो बताना चाहती थी पर उसके पापा उसे जल्दी वहाँ से ले गए ।

दिव्यांश को बहुत बुरा लगा की उसने कितना गलत बोल दिया । वो दौड़ते हुए नदी के पास खड़ा हो गया और दिवि की बाइक से चाबी निकाल ली ।

दिवि चाबी छीनने के लिए बाइक से उतरी ," ये क्या बदतमीज़ी है बाइक की चाबी दो!"

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दिव्यांश - और ना दूँ तो!
दिवि - तो छीन ली जाएगी !

ये कह दिवि उससे चाबी लेने की कोशिश करने लगी और इनसब के चक्कर में उन दोनों के नीचे का पत्थर खिसक गया और दोनो एक साथ पानी में ।

दोनो एक दूसरे को थामे बाहर निकले ,दिव्यांश दिवि के बालों को सही करते हुए बोला," जनता हूँ गलती हो गयी अब माफ भी कर दो ,यार इतने साल का गुस्सा भी तो था ! पर इस हिमालय कि कसम मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ !"

दिवि ने मुँह घुमा लिया," चल झूठा!"

दिव्यांश ने दिवि को अपनी तरफ खींच के इस आधे पत्ते को  दिवि के पत्ते से जोड़ दिया ,वो दोनो बेहद करीब थे ।

दिव्यांश - अब जाके दिखाओ दूर !

दिवि ने कोशिश की पर दिव्यांश की मजबूत पकड़ से नही छूट पायी और खुद पे तरस खा के उसकी बाँहो में ही कैद हो गयी ।

दिव्यांश उसकी मासूमियत पे मुस्कुरा उठा । उसने दिवि को उठाया और नदी से बाहर ले आया ,दिवि अब उसके सीने से लग आंखे बंद कर चुकी थी ।

उन्हें ऐसे जाते देख ऐसा लग रहा था जैसे हिमालय भी मुस्कुरा रहा था ...

समाप्त !!
@दीक्षा चौधरी

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