Short Love Story in Hindi [ एक सच्ची प्रेम कहानी]

Short Love Story in Hindi | Love Story in Hindi Short

love story in hindi Short:आज फिर मै आप सबके लिए एक बहुत ही अच्छी कहानी Short love story in hindi। love story in hindi Short लेकर आया हूं जिसे पढ़कर आपको बहुत अच्छा लगेगा तो शुरू करते है आज की कहानी।।

Short Love Story in Hindi | Love Story in Hindi Short

Short Love Story in Hindi

पुष्कर अजमेर ।

शाम का समय ..

ब्रह्माजी के मंदिर में घण्टियों और नगाड़ों की आवाज़ आ रही थी ,मतलब शाम की आरती शुरू हो गयी थी । घाट पे भी चहल - पहल काफी बढ़ गयी थी ।
ब्रह्म घाट और गऊ घाट पे तो खासी भीड़ थी । आखिर राजस्थान का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल जो था ।और विश्व का एक मात्र ब्रह्मा मंदिर भी तो यही पे स्थापित है।

रेणु अपने घर से निकल कर संकरी गलियों से होते हुए ब्रह्मा जी के मंदिर के सामने जाके रुकी और सीढ़िया और भीड़ को पार करते हुए प्रांगण में आ गयी ।

वहाँ एक लड़की हाथ जोड़ के और आँखे बंद करके कुछ बड़बड़ाये जा रही थी । देख के लग रहा था भगवान जी से कुछ माँग रही थी।

रेणु ने उसका हाथ पकड़ा और घाट की तरफ मुड़ते हुए उस से बोली," अरे खड़े - खड़े प्रार्थना करने से माया दी टीचर नहीं बन जाएगी । पहले उन्हें ढूँढो तो सही ।"

जो लड़की मंदिर में खड़ी थी उसका नाम सिमा था , ये तीन बहने थी जिनमे वो मंजिली, रेणु सबसे छोटी और माया सबसे बड़ी थी और उनका छोटा भाई था दीप । शायद उसी की उम्मीद में ये तीनों इस धरती पे अवतरीत हुई ।
खैर, अभी तो वो दोनों घाट की तरफ चल पड़ी।

घाट पे देखने लायक नजारा था । चारों और भीगे हुए लोग घूम रहे थे ,कुछ विदेशी कुछ देशी । और साथ ही बहुत सारे बंदर भी । यहाँ आपको इंसानों के जितने ही बंदर देखने को मिल जायेंगे। और घाट पे उतरते वक़्त इनका काम है आपके पैर पकड़ लेना ।

सिमा और रेणु जैसे ही घाट पे पहुँची एक बंदर ने रेणु का हाथ पकड़ लिया । रेणु के लिए ये आम बात थी ,वो उसे चने देते हुए बोली," जब भी आऊँगी हाथ पकड़ ही लेगा ,पता नही किस जन्म की प्रेमिका लग रही हूँ इसे मैं!"

सिमा हँस पड़ी," क्या पता इस जन्म की ही प्रेमिका हो तुम!"

दोनों हँसते हुए घाट पे नजर दौड़ाने लगी । थोड़ि दूर एक लड़की हाथ जोड़े आँखे मूंदे खड़ी दिख गयी ।

रेणु - वो रही माया दिदी।

दोनों उस तरफ बढ़ी। घाट पे ठंडी हवा चल रही थी । माया की चोटी में से बालों कि कुछ लटें उसके चेहरे पे आ रही थी । वो सामने खड़े पहाड़ जिसपे ब्रह्मा जी की पत्नियां ,सावित्री और गायत्री का मंदिर था, को प्रणाम कर रही थी । कहते है वो दोनों ब्रह्मा जी से रूठ के उस पहाड़ पे चली गयी । और रास्ते में पड़ती है ये पुष्कर झील जिसपे अब पवित्र घाट बन गया ।

वो मन ही मन कुछ बोल रही थी उस मंदिर को देख के ।

सिमा  पास आते हुए बोली," दिदी शाम हो गयी है , कल आपका रिजल्ट भी आने वाला है।"

वो जाने को मुड़ी तभी उसकी नजर ब्रह्म घाट की तरफ पड़ी । घाट के उस पार एक नौजवान खड़ा था और अपने गीले बालों से पानी झटक रहा था । वो ज्यादा तो नहीं देख पायी सिवाय उसकी आँखों के । पुष्कर झील सी गहरी लगी उसे वो आँखे।

सुबह हुई और घर में काफी चहल पहल थी । आज उसका शिक्षक परीक्षा का परिणाम आने वाला था ।

उसने जल्दी से अपने गीले बालों को पिन से सेट किया और पूजा की थाली ले घाट की तरफ चल पड़ी । घाट की सीढ़ियों से उतरते हुए वो किसी लड़के से टकरा गई । और भारतीय नारी का परिचय देते हुए ,बिना अपनी गलती माने अगले को गलतियों का पुतला करार दे दिया गया।

वो लड़का शांत सा खड़ा उसे देखता रहा ,वो लगातर बोले जा रहा थी। वो पास से ही पंडित जी से पानी का गिलास लाया और उसकी तरफ बढ़ाते हुए बोला," कबसे बोले जा रही है पानी पी लीजिए ,गला सुख गया होगा ।"

वो उसे कहर भरी नजरों से देखते हुए घाट की तरफ मुड़ गयी । और वो लड़का उसे जाते हुए देख कर बस होले से मुस्कुरा दिया ।

आरती होने के बाद वो प्रसाद लेके वापिस घर की तरफ मुड़ी और फिर से नुकड़ की एक दुकान पे वो दोनों टकरा गए । थाली गिरते -गिरते बची थी , और लड़के का कत्ल उसकी आँखों से होते होते बचा था ।

उसके बोलने की रफ्तार फिर शुरू हुई," पुष्कर के छोरे क्या कम थे जो अब शहरी बाबू भी आकर टकराने लगे है । माता रानी कहीं तो चैन मिले हमें ।"

वो लड़का अबकी बार भी शांत था पर इस बार उसने गिलास नहीं पकड़ाया बल्कि उस से नजरे फेर दुकान की हेंडीक्राफ्ट की वस्तुएँ देखने लगा ।

माया ने फिर मुँह बिचकाया ," शहरी लोग क्या जाने हाथ की बनी चीज़ों का मोल , और क्या ही जाने इनकी संस्कृति!"

पर अब उसकी भी नजर झुमकों पे जा ठहरी जो कि एक रंगीन डोर की कारीगरी से बनी थी । एक लड़की के सामने सझने - सँवरने की चीज़ हो और वो उसे ना देखे ऐसा कैसे हो सकता था।

उस लड़के ने उसके हाथ में उन झुमकों को देखा और बोला," आपके हाथ में जो इयरिंग्स है वो जयपुर की कलाकारी है ।"

माया अपनी आवाज़ में सख्ती लाते हुए बोली," जरूरी थोड़ि ही है ,हो सकता है पश्चिमी राजस्थान की शैली हो !"

वो लड़का शांत आवाज़ में बोला," कसीदे की कारीगरी अक्सर जयपुर में ही होती है । पश्चिमी राजस्थान की कारीगरी में कुंदन और काँच का प्रयोग होता है ।"

माया ने उसकी आँखों में झांका ,वो फिर से मुस्कुरा के चला गया । माया को उसकी आँखें पहचानी सी लगी । फिर सारे विचारों को किनारे कर वो घर की तरफ चल पड़ी ।

घर जाते ही उसे खुशखबरी  मिली कि उसका सेलेक्शन हो गया है ।पर तभी पिता जी ने एक आदेश के रूप में भावनाओं का विस्फोट किया ।

" आज शाम माया को देखने लड़के वाले आ रहे है ।उसे कहो तैयार रहना।"पिताजी ने फरमान सुनाया।

ये क्या ! अभी तो वो शादी करना नहीं चाहती थी फिर ये क्यों हुआ । ये अंतर्द्वंद उसके मन में चल रहा था ।वो नहीं करना चहती थी शादी ,शायद कोई मन में बस गया ,हाँ ! वही नवयुवक!

हमेशा की तरह आज भी वो झील के पास घाट पे खड़ी थी । उसने झील को प्रणाम किया और दूर पहाड़ पे बने देवियों के मंदिर को प्रणाम कर हाथ जोड़ आँखे मुंद के कुछ बड़बड़ाने लगी," है देवियों ! कुछ करो ,अरे करना ही पड़ेगा ,मुझे ये शादी नहीं करनी ।क्यों नहीं करनी? मुझे नहीं पता । बस हमेशा की तरह आज भी आप ही सब सही करेंगी ,अच्छा चलिये शादी रुकवा नहीं सकते तो उनसे मिलवा ही दिजिए एक बार, जय माता दी।"

इनसब के बीच कब वो लड़का उसके पास आकर खड़ा हो गया उसे पता ही नहीं चला । उसने आँखे खोली और उसे देख बिफर पड़ी," पीछे ही पड़ गए हो तुम तो ! अरे पुष्कर में और भी लड़कियाँ है उन्हें भी तो देखो!"

इस लड़के ने बिना कुछ बोले हाथ आगे किया । माया उसे प्रश्नवाचक निगाहों से देखती रही ।

वो अपनी शांत आवाज़ में फिर बोला ," प्रसाद है आरती का! थोड़ा खुद खा लीजिए थोड़ा बंदरो को दे दीजिएगा ।वरना आपको जाने नहीं देंगे ।"

माया को अपनी भूल का अहसास हुआ ,वो उससे माफी माँगती इस से पहले वो जा चुका था ।

अगले दिन मेहमान आ गए थे , माया को भी नाश्ते के साथ बुलाया गया । माया नीचे नजरें कर पहुँच तो गयी पर सामने बैठे लड़के को एक बार भी  नहीं देखा ।

" ये है पवन राठी ! पुष्कर के ही है पर जयपुर अपना बिजनेस संभालते है!" माया के पिताजी ने कहा ।

माया ने सोचा एक बार देख ही लेती हूँ आखिर है कौन । उसने नजरें उठायी और नजरें आश्यर्य से बस थम ही गयी, सामने वही बैठा था जिस से वो इतनी बार टकरा चुकी थी।"

शायद माया को भी वो पसंद आ गया था । उसका शांत व्यवहार ,उसकी शालीनता ,उसका मासूम चेहरा ।

माया ने ऊपर की तरफ देखा और खुद से ही बोली," वाह ! माता रानी क्या दृश्य दिखाया है , जो पसंद था उसे ही घर पे बुलाया है। मान गए आपको जय माता दी!"

थोड़ि देर बाद वो वाशरूम के बहाने अंदर गया और फिर बाहर आके वो सब घर को चल पड़े । उनकी तरफ से हाँ थी । और माया के पास अब ना करने की कोई वजह नहीं थी ।

वो अंदर गयी तो उसके कमरे में एक कागज रखा हुआ था । उसने उठाया और पढ़ा ," वहीं आकर मिलिए जहाँ हमसे मिलने की प्रार्थना की थी ।"

पता नहीं उसे क्या हो गया था ,उसके गाल भी लाल सेब जैसे हो गए । शाम से पहले वो खुद को सौ बार आयने में देख चुकी थी । और दस तरीके से दुप्पटे को खुद पे लगा के देख चुकी थी ।

शाम को वो मेले का आयोजन देखने छत पे चढ़ी ,बहुत से गोरबन्द बांधे ऊँट वहाँ सजे हुए थे । ऊँट गाडियाँ जिनका लुफ्त विदेशी उठा रह थे । रौनक देख के तीनों बहनों के चेहरे पे भी रौनक आ गयी । कार्तिक का महीना चल रहा था जिसमें विशाल मेले का आयोजन होना था ।

वो आज शाम को फिर से घाट की तरफ चल पड़ी । पर आज सबकुछ नया सा लग रहा था । मंदिर की घण्टियाँ ,नगाड़ों और आरती की आवाज़ उस के अंदर एक अलग ही रोमांच पैदा कर रही थी ।गलियों से चलते हुए उसने महसूस किया कि बचपन से वो इन्ही गलियों में घूमी है पर आज उसे वो बेहद प्यारी लग रही थी ।

घाट पे वो बंदरो को चने खिला के आगे बढ़ी । वो फिर से घाट के उस पार था । हाँ ये वही था ,जिसे उस दिन देखा था ।

वो दौड़ती हुई ब्रह्म घाट के पास जाने लगी । उसके तो जैसे पंख ही लग गए थे । वो नजदीक पहुँची। वो झील को देख रहा था, हवाएं उसके बालों को बिगाड़ने में लगी हुई थी पर उसे किसी की फिक्र नहीं थी ।

वो बोला," आज जब तुम उन्हीं मंदिरों और गलियों से गुजरी तो बहुत कुछ अलग लगा होगा । बेशक यही घाट है यही झील है यही पहाड़ है पर सब नया लग रहा ! तुम्हें पता माया ये स्थल , ये जगह ,बस आम सी बात है हम सब के लिए पर जब दिल में कोई उमंग हो तो सब बदल जाता है । ये धरोहरें सदियों से यहाँ खड़ी है ,कई जिंदगियों की छाप है इनपे और कई लोगों के  अनुभव भी।"

माया ,पवन को एकटक देखने लगी ।

सही तो कहा उसने !ये धरोहरें किसी के लिए आम है और किसी को उनकी जिंदगी के सबसे कीमती तोहफे से मिला जाती है । उसने भी तो पवन को यहीं देखा था घाट के उस पार से...

उसने पवन के कंधे पे सर झुका लिया ,हवा अब उनके मन को छू के जा रही थी । पहाड़ की देवियों के मंदिर की घण्टियों की आवाज़ वातावरण में फ़ैल गयी थी !

समाप्त!

दीक्षा चौधरी

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